रास्ता मुश्किल है माना इस सफर का ,
देख लेंगे फिर चल के मंजिल-ए-मकसूद।
हर कहीं फैले हुए हैं बस हवा के लोथड़े,
जो बने बीनाई के अब हमसफर महदूद।
#मंजिल-ए-मकसूद = लक्ष्य, #महदूद = सीमा #बीनाई =रोशनी
#शेर
©सूर्यप्रकाश गुप्त/०६-१०-२०२३
#कैफियत आदमी बड़ा हो चला है मजहबों से अब, यहाँ खुदा की नही, सिर्फ हैसियत उसकी। गढ़ लिये हैं अकीदों से कई बुत उसने, इबादतगाहों में फैली है ...
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