#हिन्दीदिवस: आखिर एक ही दिन क्यों?
हिन्दी दिवस आखिर वर्ष मे सिर्फ एक बार एक दिन मनाये जाने का औचित्य क्या है?
क्या हम ३६४ दिन हिन्दी को धकियानें, नेपथ्य पर ले जाने वाले अपने कुत्सित प्रयासों पर पर्दा डालने के लिये १ दिन हिन्दी दिवस मना रहे हैं? या फिर हम घोर ढपोरशंख हैं जो सालभर अंग्रेज़ी की समृद्धि मे लगे रहकर हिन्दी पट्टी की सिट्टी-पिट्टी गुम करने के अपराध के प्रायश्चित हेतु एक दिन के लिये हिन्दी का श्राद्ध दिवस मनाकर अगले दिन से पुन: अंग्रेजी की श्रीवृद्धि मे लग जाते हैं। यह तो बिल्कुल वैसे ही है जैसे बलि देने से पूर्व जैसे बकरी को एक दिन खिला पिला दिया जाता है।
आजादी के बाद से हमने हिन्दी दिवस मनाने के अतिरिक्त हिन्दी के विकास के लिये किया क्या है? आज तक न्यायालय की भाषा क्यों नहीं बना पाये? जरा विचार करें,आज तक हिन्दी मे विज्ञान,तकनीकी, चिकित्सा शिक्षा की पेशेवर भाषा के रूप मे कम क्यों नहीं विकसित कर पाये हैं? हिन्दी को पूरे देश की राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बना पाये? आज भी हम अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को प्रोत्साहित क्यों कर रहे हैं? हिन्दी पुस्तकें पढ़ने वाले विद्यार्थियों और शिक्षकों को पिछड़ा मानकर क्यों व्यवहार किया जाता है? यहाँ तक उत्तर प्रदेश जैसे हिन्दीभाषी प्रदेशों के सिविल सेवाओं मे हिन्दी माध्यम के छात्रों को नेपथ्य पर क्यों ढकेला जा रहा है? हिन्दी को आज तक हम बाजार की भाषा के रूप मे अंग्रेज़ी के समकक्ष क्यों नहीं खड़ा कर पाये हैं?
अगर हम इन सभी प्रश्नों पर विचार करें तो हमें सिर्फ एक ही उत्तर मिलेगा - 'हम दिल से अभी भी अंग्रेज हैं, ढोंग के लिये हिन्दी प्रेमी।' याद रखिये जब तक हम हिन्दी प्रेमी होनें का ढोंग रचाते रहेंगे तब तक हिन्दी की और दुर्गति ही होनी है। आज आप बताइये कितने चिकित्सा, विज्ञान, तकनीकी, कानून जैसे विषयों पर हिन्दी भाषा मे कितने शोधपत्र प्रकाशित कर रहे हैं? कितने इंजीनियरिंग कालेज हिन्दी मे पाठ्यक्रम संचालित कर रहे हैं? शायद न के बराबर! फिर हिन्दी का विकास कैसे संभव है??
आज जरूरत है कि जिम्मेदार लोग अपने चाल, चरित्र व दोमुँहे चेहरे को बदलें! हिन्दी को न्यायालय, शिक्षा, चिकित्सा एवं तकनीकी की भाषा के रूप में विकसित करने के गंभीर प्रयास किये जायें। इसके साथ ही अंग्रेजी की प्रत्येक स्तर पर अनिवार्यता खत्म की जाये। हिन्दीभाषी प्रतियोगियों का मूल्यांकन जब अंग्रेज़ीदाँ प्रोफेसर करता तो स्वयं ही हिन्दी नेपथ्य पर चली जाती है, नतीजा हिन्दीभाषी छात्र स्वयं को प्रतियोगिता से बाहर व हताश निराश महसूस करता है। एक बात तो निश्चित है हम दोयम दर्जे के नकलची और मिथ्याचारी हैं, तभी हमें अंग्रेज़ी व्यवहार मे गर्व और हिन्दी व्यवहार मे शर्म महसूस करते हैं। यही कारण है कि हिन्दी - हिन्दी का शोर करके हम हिन्दीभाषा को मजाक का पात्र ही बनाते हैं..! उम्मीद है शीघ्र ही जिम्मेदार लोग चिंतन करेंगे, हिन्दी के व्यावसायिक विकास के लिये कार्य करेंगें। हिन्दी जल्द अब मात्रभाषा से मातृभाषा का सफर तय करेगी, इसी सकारात्मक उम्मीद के साथ आप सभी को मातृभाषा हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।🙏🌹🌹🙏🙏