Friday, April 16, 2021

भारत:कविता

 भारत

धधकती आग बहती है यहाँ सब के सीने में,

किसी का रंग धानी है किसी का रंग भगवा है।

यहाँ हर आदमी मोहरा भर  है सियासत का,

कहीं पर जेब खाली हैं, कहीं आँखे सवाली है।

तेरे अंदाज मे शायद अभी तक अँधेरा है,

कहीं पर रोशनी खाली,कहीं खालिस अँधेरा है।

ये कैसा देश है मेरा, ये कैसा वेश है मेरा,

कोई आबाद है घर से,  कोई भूखा है नंगा है।

सवालों के कई अब यहाँ पर रंग होते हैं,

किसी की लाल कुर्ती है,किसी का नीला झंडा है।

मेरी रोटी, मेरा कपड़ा, मेरी आवाज फीकी है,

सियासत की रंगीन चालों मे मेरा हर रंग फीका है।

जरूरत किसको मेरी है यहाँ पर वोट से ज्यादा,

किसी को सत्ता प्यारी है, किसी को पैसा प्यारा है।

मैं भूखा हूँ , मैं बेबस हूँ, मैं भारत का तिरंगा हूँ,

मगर सत्ता के चश्मे से देश बिलकुल भला-चंगा है।


(सर्वाधिकार सुरक्षित : सूर्यप्रकाश गुप्त/१३-०४-२०२०)

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