Friday, October 20, 2023

कैफियत

 #कैफियत 


आदमी बड़ा हो चला है मजहबों से अब,

यहाँ खुदा की नही, सिर्फ हैसियत उसकी।


गढ़ लिये हैं अकीदों से कई बुत उसने,

इबादतगाहों में फैली है वहशियत उसकी।


कत्ल, धोखा, बेईमानी जैसे बुत उसके,

इबादतों में यही दिखती कैफियत उसकी।


मन्दिर-ओ-मस्जिद की जगह मयखाने,

उसकी जुबान कब होती  नीयत उसकी।


हर तरफ बस जंग का कारोबार यहाँ,

अमन-ओ-आमान कब तरबियत उसकी।


हर इक फूल बारूद में यहाँ बेसुध हैं,

मौसमी तासीर में सिर्फ जुल्मियत उसकी।


मौत की रंगत लिये हँसी यहाँ मिलती है,

कफ़न के साथ खड़ी मनहूसियत उसकी।

©सूर्यप्रकाश गुप्त/२०/१०-२०२३

#धुआँ #जंग #मौत #मजहब #आदमी

Saturday, October 7, 2023

#गज़ल

 जमीं का जर्रा-जर्रा बोलता है,

लबों की तरह ये दिल बोलता है।


राज जो भी दफन हैं जेहन में,

बड़े आहिस्ता से ये खोलता है।


कभी चुपचाप सुनना धड़कनों को,

जुबाँ की तरह ये दिल बोलता है।


शिकायत है उनसे,मगर कैसे करें?

दिये के जैसे ये  दिल डोलता है।


नमीं आँखों की दिल में आ गई है,

जख्म जज्बात दिल में घोलता है।


©सूर्यप्रकाश गुप्त /०૪-१०-२०२३

#दिल #धड़कन #अहसास #जज़बात #गजल


#शे्र

 रास्ता मुश्किल है माना इस सफर का ,

देख लेंगे फिर चल के मंजिल-ए-मकसूद।


हर कहीं फैले हुए हैं बस हवा के लोथड़े,

जो बने बीनाई के अब हमसफर महदूद।


#मंजिल-ए-मकसूद = लक्ष्य, #महदूद = सीमा #बीनाई =रोशनी 


#शेर 

©सूर्यप्रकाश गुप्त/०६-१०-२०२३

Saturday, April 2, 2022

दलित विरोध के सुर-भारत बंद : कितना सही,कितना गलत?

 #दलित विरोध के सुर-भारत बंद : कितना सही,कितना गलत?


सुप्रीम कोर्ट के फैसले का शान्तिपूर्ण विरोध एक सीमा तक लोकतंत्र मे स्वीकार है किन्तु आन्दोलन के नाम पर हिंसा बिलकुल भी क्षम्य नहीं है।यह न केवल न्यायपालिका का ही अपमान है बल्कि बाबा साहब का भी अपमान है।डॉ० अम्बेडकर ने सामाजिक न्याय व सामाजिक समता की बात की है जिसके लिये वर्तमान में हमारे संविधान मे यथोचित व्यवस्थाये मौजूद हैं। दलितों के आर्थिक उत्थान के लिये संविधान मे शिक्षा, रोजगार व  शासन  आदि के क्षेत्र में जहाँ आरक्षण की व्यवस्था मौजूद है ,वही सामाजिक समानता व दलित अधिकारों के संरक्षण हेतु अनेक संवैधानिक उपबंध मौजूद हैं जिसका पर्याप्त लाभ दलित समुदाय को मिल रहा है। सत्ता की निरंकुशता पर रोक लगाने के लिये सुप्रीम कोर्ट को संविधान का संरक्षक बनाया गया है । जिससे दलित और वंचित वर्गों के अधिकारों में  किसी भी कीमत पर रत्ती भर भी कमी न आने पाये। और इसमे सुप्रीम कोर्ट ने अपनी भूमिका का निर्वहन काफी हद तक ईमानदारी से किया है, किंतु सैकड़ों वर्षों की सवर्ण श्रेष्ठता की मानसिकता का पूरा विनाश सवर्णों में पूरी तरह समाप्त नहीं हो सकी है, इसका अपवाद शासनतन्त्र भी नहीं है। वर्तमान मे सुप्रीम कोर्ट का फैसला  SC/ST Act.को बेहद कमजोर करने वाला हैं जिसमे  डीएसपी स्तर के अधिकारी की जांच  के पूर्व एफ.आई.आर.दर्ज नहीं करने का प्रावधान है, जिससे इस कानून का दुरुपयोग रोका जा सके।जो शायद कहीं न कहीं दलितों मे इस आशंका को जन्म देने वाला है कि यह फैसला सवर्ण श्रेष्ठता से प्रेरित है।उस पर मुख्य न्यायाधीश का ब्राहमण होना इस आशंका को और भी बढ़ाने वाला है।किन्तु इस तरह की शंकाएं  निर्मूल हैं क्योंकि न्यायाधीश संवैधानिक उपबन्धों से परे जाकर निर्णय नहीं दे सकते हैं फिर चाहे वो किसी भी जाति या धर्म से ताल्लुक रखते हों। 

  यदि हम ग्रामीण इलाके पर नजर डाले तो अभी भी दलित अपने सामाजिक व आर्थिक अधिकारों के लिये संघर्ष करता नजर आता है, आज भी कहीं कहीं उसे सामंती प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है। जो दलित आज सत्ता मे भागीदारी कर रहे हैं या किसी न किसी सरकारी पद पर हैं सिर्फ वही संवैधानिक सुविधाओं का लाभ ऊठा पा रहे हैं और उनकी संख्या ब-मुश्किल से  10% से अधिक नहीं है।इसके विपरीत जो आजादी के सत्तर साल बाद भी ठीक से समाज मे सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं  प्राप्त कर सका है वह आज भी 70 साल पहले का जीवन जी रहा है। उसके लिये आजादी या आरक्षण सिर्फ छलावा ही साबित हो रहा है। सबसे दुखद आश्चर्य तो यह कि स्वयं को दलित हितैषी साबित करने की होड़ मे खुद को आगे दिखाने की कोशिश करने वाले तथाकथित दलित नेता भी दलितो को शोषण से मुक्ति का सब्जबाग दिखाकर सिर्फ उन्हे बर्गलाने व अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने का ही काम करते है , पिसते है बेचारे गरीब, मजबूर दलित.।इसके साथ ही सत्ताधारी दलों द्वारा भी इनका वोटबैंक के रुप मे इस्तेमाल करना भी इन्हें हताश करता है , जो दलित आक्रोश के लिये उत्तरदायी है। भारत बंद जैसे आंदोलन इसी आक्रोश की अभिव्यक्ति हैं। वर्तमान मेंसरकार और हमारे समाज दोनो को दलित व वंचित वर्गों की चिंताओं के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरुरत है।

        भारत बंद आंदोलन के दौरान उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले मे घटी एंबुलेंस रोकने की घटना जिसमे मरीज की मौत हो गई, ने निश्चित ही राजनैतिक आंदोलनों व आक्रोश प्रदर्शनों के घोर  नैतिक पतन व आमानवीयता की पराकाष्ठा को छू लिया है, जिसे किसी भी रूप मे जायज नहीं ठहराया जा सकता है। दलित नेताओं व आंदोलनकारियों को बाबा साहब का यह निर्देश हमेशा याद रखना चाहिये - "लोकतंत्र को मजबूती सिर्फ आपसी भाईचारा व मानवीय मूल्य ही दे सकते हैं। यदि हमने इनको खो दिया तो हम लोकतंत्र भी खो देंगे।" देश भर मे शान्तिपूर्ण आंदोलन के स्थान पर दंगे - फसाद करना निश्चित ही बाबा साहब के विचारों को खुली चुनौती है।ऐसे मे बड़ा आश्चर्य होता है जब कोई हिंसक आंदोलनकारी खुद को अंबेडकरवादी बताता है। क्या ऐसे  तथाकथित अंबेडकरवादियों को तनिक भी शर्म महसूस नहीं होती है? क्या 'जय भीम' का नारा लगाने वाले तथाकथित अंबेडकरवादियों ने कभी ध्यान देकर बाबा साहब का साहित्य पढ़ा है? शायद नहीं , तभी दलितों का भारत बंद आंदोलन हिंसक व अमानवीयता की हद पार कर गया। दलित नेता व तथाकथित अंबेडकरवादी भविष्य मे आंदोलन के पहले कम से कम बाबा साहब को  एक बार ठीक से जरूर पढें , ताकि कम से कम बाबा साहब का सम्मान तो सुरक्षित रह सके, अन्यथा अंबेडकर  जैसा महान विचारक मजाक ही बनकर रह जायेंगे। किसी भी महापुरुष की महानता का स्तर उसके अनुयायी निर्धारित करते है।

      सबसे अहम और जरूरी बात कि आंदोलन या आक्रोश व्यक्त करते समय किसी भी समुदाय की धार्मिक व सांस्कृतिक आस्था पर हमला न किया जाये क्योंकि लोकतंत्र की खूबसूरती तभी है जब देश मे विविध विचारों   और संस्कृतियों का सहअस्तित्व कायम रहे।इसके लिये सरकारों द्वारा दृढ़ता से संवैधानिक मूल्यों का संरक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिये। भारत बंद के दौरान केन्द्र सरकार व प्रदेश सरकारों का रवैय‍ा बेहद ही हताश करने वाला है।भारत बंद आंदोलन के दौरान देश में कहीं कहीं हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को जय भीम के नारे के साथ जूते -चप्पलों से पीटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।इसी प्रकार कहीं-कहीं  बाबा साहब की मूर्ति के तोड़ने की  घटनाएँ घटी हैं,इन्हे भी किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता है।इसके साथ ही देशभर मे भड़की हिंसा व तोड़-फोड़ की घटनाओं ने भी केन्द्र व राज्य सरकारों के कानून-व्यवस्था संबंधी दावों की हवा निकालकर रख दी है।केन्द्र व राज्य सरकारों को भविष्य मे बड़बोलेपन से बचकर कानून - व्यवस्था को चाक-चौबंद करने की जरूरत है,जिससे भविष्य में राजनैतिक आंदोलनों के दौरान देश को जान-माल का नुकसान न उठाना पडे़ जैसा इस दलित आंदोलन के दौरान हुआ। उपद्रवियों को किसी भी कीमत पर बक्शा नहीं जाना चाहिये।

                                            -  एस. पी.गुप्त   

                                       (प्राध्यापक,शिक्षा संकाय  )

Tuesday, May 25, 2021

सनातन हिन्दू धर्म मे ब्रह्म की अवधारणा।

 #सनातन_हिन्दू_धर्म_में_ब्रह्म_की #अवधारणा

                      (प्रथम भाग)

सनातन हिन्दू धर्म से बाद विकसित होने वाले कुछ पंथ सनातन हिन्दू धर्म का मूर्तिपूजक कहकर मजाक उड़ाते रहते हैं। यह बिलकुल वैसा ही है जैसे अपने पिता के त्याग और गंभीर व्यक्तित्व से परिचित हुए बिना ही सतही स्तर पर पुत्रों द्वारा मजाक उड़ाया जाता हो। आश्चर्य तो तब होता जब यही पंथ सनातन हिन्दू धर्म की परंपराओं, विश्वासों को थोड़ा बहुत परिवर्तन के साथ स्वीकारकर गर्वोक्ति का अनुभव करते हैं। बावजूद इसके बड़ी बेशर्मी से गौरवशाली सनातन परंपराओं का मजाक उड़ाते रहते हैं। किसी भी पंथ(कुछ लोग भ्रमवश जिसे धर्म कहते हैं) का सबसे महत्त्वपूर्ण केन्द्र सर्वशक्तिमान सत्ता पर आस्था और विश्वास होता है। यह सर्वशक्तिमान सत्ता अलग -अलग पंथों मे अलग-अलग नामरूपों(एकक सत्ता के रूप मे) प्रचलति है, जैसे सनातनी हिन्दू के लिये #ब्रह्म( निराकार सत्ता>साकार= अवतार+देवता+मनुष्य+जीवजगत), इस्लाम पंथियों के लिये #अल्लाह/खुदा, ईसाई पंथियों के लिये #गॉड की अवधारणा आदि।

सनातन हिन्दू धर्म सहित दुनियाँ के सभी धर्मों मे एक सर्वशक्तिमान सत्ता की संकल्पना की गयी किन्तु फिर भी   सनातन हिन्दू धर्म का प्रचार विधर्मियों(गैरसनातनी) इस रूप मे किया जाता है जैसे सनातन हिन्दू समाज मूढ़ हो, अज्ञानी हो, एवं मूर्तिपूजा मे जकड़ा हुआ एक जड़ समाज हो किन्तु वास्तविकता इसके बिलकुल विपरीत है।  विश्व के जितने भी धर्म विकसित हुए हैं उनके मूल मे सनातन वैदिक विचार ही केन्द्रीभूत हैं। इस लेख का उद्देश्य न केवल विधर्मियो के इस भ्रमजाल और मिथ्याचार का खण्डन करना है अपितु वेद, उपनिषद एवं सनातन धर्म की गौरवशाली परंपराओं का अध्य्यन न कर पाने वाले अपने सनातनी हिन्दू समाज मे धार्मिक आत्मविश्वास एवं स्वयं के सनातन परंपरा का उत्तराधिकारी होने की गौरवानुभूति कराना भी है। इसके साथ ही इस लेख का उद्देश्य ब्रह्म(ईश्वर) की अवधारणा के सन्दर्भ मे उन्हे किसी भी विधर्मी द्वारा फैलाये जाने वाले मिथ्यावादों का तीक्ष्णता से खण्डन करने निमित्त योग्यता से पोषित करना भी है। यहाँ  ब्रह्म(निराकार सत्ता) एवं उससे उद्भूत साकार सत्ता(अवतारी सत्ता) का संक्षेप मे #केनोपनिषद के विशेष सन्दर्भ मे किया जायेगा।

#ब्रह्म (निराकार अद्वितीय सर्वशक्तिमान सत्ता)


ब्रह्म की अवधारणा स्पष्ट करने मे केनोपनिषद के कुछ श्लोक विधर्मियों की भ्रान्तियों के निवारण हेतु काफी सहायक हैं। इश श्लोक मे मूर्तिपूजा को निरर्थक माना गया केवल ब्रह्म की अनुभूति को ही सार्थक समझा गया है।

                 "यद्वाचानभ्युदितं येन वागभ्युद्यते।

         तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते।"(श्लोक-૪)


इस श्लोक मे स्पष्ट उल्लिखित है कि जिस ब्रह्म को वाणी शब्दों से वर्णित नहीं कर सकती,उस वाणी बोलने का सामर्थ्य ब्रह्म के बनाये नियमों से ही प्राप्त होता है,उसको ही तू ब्रह्म जान न कि उनको(भिन्न-भिन्न देवी देवताओं की) जिसकी संसारी लोग उपासना करते हैं। इस श्लोक से  स्पष्ट होता है कि विश्व मे #एकैश्वरवाद का प्रकाश सनातन वैदिक धर्म से ही प्रकाशित हो रहा है।

केनोपनिषद का केवल एक ही श्लोक एकैश्वरवाद की घोषणा नहीं करता वरन् अनेक श्लोक उपलब्ध है जो एकैश्वरवाद की अवधारणा सनातन हिन्दू परंपरा का मूल घोषित करते हैं। एक उदाहरण देखें-

     "यच्चक्षुषा न पश्यन्ति  येन चक्षूंषि पश्यति,

      तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते।"( श्लोक -६)


यहाँ पर हमारे ऋषियों ने स्पष्टतया मूर्तिपूजा/मानव पूजा का निषेध करके सर्वशक्तिमान ब्रह्म की उपासना की शिक्षा दी है। यहाँ पर ऋषि जिज्ञासु शिष्यों को ब्रह्म की उपासना का ज्ञान देते हुए कहते हैं -'जो ब्रह्म आँखो से नहीं देखता है न दिखायी देता है उसी ब्रह्म के नियमों की शक्ति से आँखे देखने मे समर्थ होती हैं उस शक्ति प्रदाता को ही तू ब्रह्म जान तथा आँखों से देखने योग्य जिन वस्तुओं की उपासना( मूर्तियाँ आँखो से देखने योग्य हैं)सांसारिक लोग करते हैं वह ब्रह्म नहीं है।

ब्रह्म सर्वव्यापक सत्ता है वह प्रत्येक भूत(जड़-चेतन पदार्थ) मे विद्यमान रहकर सृष्टि का संचालन करता है। केनोपनिषद के चतुर्थ खण्ड के एक श्लोक इसका स्पष्ट उद्घोष करता है- 


      "सा ब्रह्मेति ब्राह्मणो वा एतद्विजये महीयध्वमिति ततो विदां चकारब्रह्मेति।" (श्लोक -२६)

यहाँ ऋषि स्पष्ट उद्घोष करते हैं कि जीवात्मा अपनी शुद्ध बुद्धि के प्रभाव से ब्रह्मविद्या प्राप्त करता है उसे बोध रहता है कि सब देवों( इन्द्रियों) की सफलता ब्रह्म की ही सफलता है। यहाँ स्पष्ट है कि ब्रह्म सर्वव्यापक है प्रत्येक जीवात्मा मे व्याप्त है और उसका नियमन करता है।उसकी इन्द्रियों(कर्मेन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों) को सफलतापूर्वक क्रियायें सम्पादित करने की शक्ति प्रदान करता है।     

                   - शेष अगले अंक में। 

  (सर्वाधिकार सुरक्षित : सूर्यप्रकाश गुप्त/२५-०५-२०२१)

Friday, April 16, 2021

मजहब और आदमी:कविता

 मजहब और आदमी

आदमी मजहब को इस तरह ढोता है,

जैसे आदमी ने नहीं,

मजहब ने आदमी को बनाया हो!

आदमी ने अगर मजहब बनाया है,

मजह‌ब आदमी पर भारी क्यों है?

मजहब ने यदि आदमी बनाया है,

तो शैतानी आमाल क्यों हैं?

बड़ी अबूझ पहली सी,

बन कर रह गयी है जिन्दगी!

इसका समाधान क्या हो सकता है,

इसी उधेड़बुन मे जिन्दगी, 

को जोत रहा है आदमी,

बुद्धि का हल चलाकर,

शायद कोई अंकुर फूटे,

मजहब की कोख से,

या फिर आदमी के दिमाग से।

आश्चर्य तो यही है कि दिमाग भी,

मजहबी नशे मे धुत्त मिलता है!

शायद आदमीयत पसंद नहीं आती,

मजहबी जलसों को।

दिमाग को आदमी ने बन्द कर रखा है,

मजहबी ताले से किताबी कोठार मे,

जहाँ , प्रकाश की किरण तो क्या,

अँधेरा भी दबे पाँव जाने से हिचिकता है।

आत्मा शायद निकाल सके,

इस समस्या का सटीक हल,

लोग कहते है ये आत्मा-शुद्ध-बुद्ध-निर्मल है,

इसके पास हर समस्या का  हल है।

पर ये क्या मजहबों ने, 

आत्मायें भी गिरवी कर रखी हैं,

सुनारों की तरह।

अलग-अलग अलमारियों में,

सुनार रखता है जैसे,

अलग-अलग किस्म के जेवरात!

अलग-अलग चमक के साथ,

सारे जेवरात भ्रमित करते हैं..!

आदमी क्या करे?

कहाँ जायेगा मजहबों को छोड़कर

एक धोबी के बंधे गधे की तरह,

उसकी भी आदत पड़ गयी है,

मजहबी आमाल ढोने की।

मजहबी आमाल ढोना,

आदमी और आदमीयत ढोने से,

कहीं ज्यादा सरल है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : सूर्यप्रकाश गुप्त/१२-०४-२०२०)

भारत:कविता

 भारत

धधकती आग बहती है यहाँ सब के सीने में,

किसी का रंग धानी है किसी का रंग भगवा है।

यहाँ हर आदमी मोहरा भर  है सियासत का,

कहीं पर जेब खाली हैं, कहीं आँखे सवाली है।

तेरे अंदाज मे शायद अभी तक अँधेरा है,

कहीं पर रोशनी खाली,कहीं खालिस अँधेरा है।

ये कैसा देश है मेरा, ये कैसा वेश है मेरा,

कोई आबाद है घर से,  कोई भूखा है नंगा है।

सवालों के कई अब यहाँ पर रंग होते हैं,

किसी की लाल कुर्ती है,किसी का नीला झंडा है।

मेरी रोटी, मेरा कपड़ा, मेरी आवाज फीकी है,

सियासत की रंगीन चालों मे मेरा हर रंग फीका है।

जरूरत किसको मेरी है यहाँ पर वोट से ज्यादा,

किसी को सत्ता प्यारी है, किसी को पैसा प्यारा है।

मैं भूखा हूँ , मैं बेबस हूँ, मैं भारत का तिरंगा हूँ,

मगर सत्ता के चश्मे से देश बिलकुल भला-चंगा है।


(सर्वाधिकार सुरक्षित : सूर्यप्रकाश गुप्त/१३-०४-२०२०)

कैफियत

 #कैफियत  आदमी बड़ा हो चला है मजहबों से अब, यहाँ खुदा की नही, सिर्फ हैसियत उसकी। गढ़ लिये हैं अकीदों से कई बुत उसने, इबादतगाहों में फैली है ...

Teaching Skills for 21st Century in Indian Context